रचनाकरा हीर द्वारा 'ये रिश्ता कैसा है' विषय पर रचना

ये कैसा रिश्ता है

बड़ा अनजाना सा दिखता है 
ख़ुद में तुझको टटोलता है
ना मिलने पर मन मसोसता है
आखिर ये कैसा रिश्ता है?

ये जीना भी नहीं चाहता है
अखियाँ ताक पे रखता है
बेचैन हर पल आहें भरता है
आख़िर ये कैसा रिश्ता है?


पास होकर भी दूर  लगता है
अनजाना हमदम सा लगता है
बेवजह सिसकियाँ भरता है 
आख़िर ये कैसा रिश्ता है?


चाहत के सपने संजोता है
हर जगह मन्नत माँगता है
 सिर्फ इसे तू ही भाता है 
आख़िर ये कैसा रिश्ता है?


हीर

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