राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु सादर प्रेषित
दिनांक -18 /11 /2020
दिन- बुधवार
विधा- कविता
विषय- बिरसा मुंडा
रांची में जन्म ले बिरसा बढ़ते रहे
अभावों में ही वह पलते रहे।
माता पिता की परछाई बनकर रहे
आदिवासियों के खातिर सदा ही लड़े।
रेत से खेलना रेत पर दौड़ना
भेड़ों संग खेलना बंसी धुन छेड़ना।
परंपराओं रिवाजों के थे वे धनी
बात उनकी पीड़ा का मरहम बनी।
मिशनरी की पढ़ाई चले छोड़ कर
ईसाई धर्म की बेड़ी को तोड़कर।
अंग्रेजी अनाचार देखा बड़ा
बन सिंग बोगा का दूत हुआ खड़ा।
आदिवासियों को संगठित करता रहा
अंग्रेजों जमीदारों से आदिवासियों को बचाता रहा।
उलगुलान का नाद करके चला
अबुआ दिसुम अबुवा राज कह आगे बढ़ा।
आदिवासियों की सेना का नायक रहा
धरा पर दूत देवता का रहा।
जल जंगल जमीन की खातिर लड़ा
संस्कृति सभ्यता का संरक्षक सिद्ध हुआ।
साधना मिश्रा विंध्य
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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