कवि गौरव मिश्र द्वारा 'करवा चौथ' विषय पर रचना

सभी महिलाओं को समर्पित एक गीत 

बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे...........
उपमा तुझको किसकी दूं मैं।
तुझको उपवन सा लिख दूं मैं।
केशों में गजरा है तेरे 
नैना तेरे हैं कजरारे..
बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे...........
चलनी से राकापति देखा।
चिर आयू उस पति को देखा।
घर आंगन में दीप जलाए
तिरछे दो नैना मतवारे..
बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे...........
रंग हीना हाथो पर लाई
सजनी ने चूड़ी खनकाई 
पायल पैरों में चांदी की
कानों में झुमके हैं प्यारे..
बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे...........
उत्सव कितना है यह पावन
चिर आयू हों सबके साजन
इस परिणय की कुमुदकला भी
अपनी चिरंतन चमक पसारे..
बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे...........
दीपक, वाती, सींक, कलश सब
चौक बनी निकला है शशि अब
अर्ग दिया सजनी ने उसको
दीर्घायु हों सजन हमारे..
बैठी सजनी रूप संवारे.........
अब आयेंगे साजन प्यारे........... 

                  - गौरव मिश्र तन्हा

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