कवि डॉ.प्रकाश मेहता जी द्वारा रचना ‘बिटिया”

बिटिया

*कहां है तेरा पता..*                          *आती है साँसे, जाती है साँसे, बताती नहीं ये तेरा पता,*
*धड़कता है और कहता है दिल ऐ नादान तु बता मेरी बिटिया मिलेगी कहाँ?*

*यादों में तुमसे मिलता हूँ रोज,* 
*कभी तो सामने आकर मिलने की तमन्ना हैं,*
*तमन्ना है तुझसे मिलने की, हवाओं से पूछता हूँ तेरा पता,*
*इन सितारों से कहता हूं जहां रहे दिल की दुलारी मेरी "पिंकी"*
*रोशनी करते रहना वहां।*

*तेरे बिना जीना है कहाँ, जी रहा हुं बस तेरी यादों के सहारे,*
*पहुचना है वहां, तू है जहाँ... तू है जहाँ...तू है जहाँ.*                      

*बस एक दिया मोहब्बत का,*
*जलने दो आज,*
*मेरी चौखट पर...*
*बस एक रंगोली चाहत की,*
*सजने दो आज,*
*मेरी देहरी पर....*
*बुझने न देना इस तरह,* 
*एक भी दिया किसी के जिगर का,*
*सींचता रहता हूं उसकी लौ को,*
*दिल में संजोए अपनी यादों की फुलवारी में...*

*पलकों में आँसु और दिल में दर्द सोया है,* 
*हँसने वालो को क्या पता,* 
*रोने वाला किस कदर रोया है।* 
*ये तो बस वही जान सकता है मेरी तन्हाई का आलम,* 
*जिसने जिन्दगी में किसी को पाने से पहले असमय खोया है..*

*डॉ.प्रकाश मेहता*


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