कवयित्री मधु भूतड़ा द्वारा 'मेहंदी' विषय पर रचना

*नमन मंच*

*बदलाव मंच*

*विषय - मेहंदी* 

*शीर्षक - मेहंदी की व्यथा* 

सड़क पर बैठ कर मेंहदी कब तक लगवाओगे 

अपने हुनर को क्या हमेशा के लिए दफनाओगे 

अपनी कला कौशल को सदा के लिए भूल जाओगे 

अपनी हिन्दू संस्कृति को कब तक लुटवाओगे 

अपने संस्कारों की धज्जियाँ क्या ऐसे ही उड़वाओगे 

ऐसी मेहंदी रचाकर अपने समाज को क्या बतलाओगे 

अपने लाल रचे हाथों को देखकर कब तक इतराओगे 

अपनी सुरक्षा क्या सरे राह छोड़ कर आओगे 

मेहंदी की व्यथा-कथा को क्या कोई समझा पाओगे 

घर की औरतों को क्या कोई आईना दिखलाओगे 

खुद को खुद ही बाजारों में क्या बेच कर आओगे

मेहंदी रस्म घर दहलीज पर क्या फिर लौटा पाओगे! 

*मधु भूतड़ा*
*गुलाबी नगरी जयपुर 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ