कवि चंद्र प्रकाश गुप्त "चंद्र" जी द्वारा अद्भुत रचना

शीर्षक -       बिरसा मुंडा

( केवल 25 वर्ष की आयु का युवा बिरसा अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों का काल पुत्र बन कर उभरा था साथ ही भारत की आदिवासी जन जातियों का भगवान )

"धरती आबा" की हुंकार उठी थी गोरों की सरकार हिली थी

बिरसा मुंडा की भृकुटि तनी थी , जन जातियों को अलौकिक शक्ति मिली थी

सुगना - करमी पूर्ती के घर उलिहातु गांव में प्रकट प्रखर अरुण हुआ था

अंग्रेजों का दमन रोकने क्रांतिवीर बना था घर घर में प्रकाश हुआ था

बचपन से ही संस्कृति संरक्षण हित तन मन में ज्वार भरा था

अंग्रेजों के क्रूर अत्याचार से हृदय में क्रोध प्रचंड भरा था

आदिवासियों में अंधविश्वास दूर कर शिक्षा एवं राष्ट्र भाव का प्रसार किया था

महामारी एवं अकाल पीड़ित जनता की सेवा का वृहद संकल्प लिया था

लगान ,भूमि सुधार, धर्मांतरण, पशु बलि पर विद्रोह किया था

बंधुआ मजदूरी, बहु-विवाह, मादक पदार्थो के सेवन का पुरजोर विरोध किया था

जयपाल नाग , आनंद पांडेय जैसे गुरुओं से शिक्षा पा कर संगठन खड़ा किया था

सोमा मुंडा, गया मुंडा ,दोनका मुंडा जैसे मित्रों संग अंग्रेजों पर वार किया था

अद्भुत वीर बिरसा में अनुपम अलौकिक शक्ति समायी थी

 मातृभूमि की रक्षा हित बाजी अपने प्राणों की लगायी थी

आदिवासी जनजाति समाज में  पराक्रम शौर्य शक्ति जगायी थी

संगठन शक्ति से अलख जगा कर मशाल क्रांति की जलायी थी

बिरसा युवाओं के आदर्श बने थे जवानी में रवानी आयी थी

बिरसा क्रांतिवीर भगवान समान थे जन जन ने महिमा गायी थी

अंग्रेजों ने कुटिलता से बना कर बंदी बिरसा को रांची जेल में ज़हर दिया था

जिस समाज ने बिरसा को भगवान मान लिया था उनके अरमानों को कुचल दिया था

नौ जून उन्नीस सौ को बिरसा विदेह हुए थे हम उनका कोटि कोटि अभिनंदन करते हैं

संस्कृति की रक्षा हित जिसने अपना बलिदान दिया, कृतज्ञ राष्ट्र रूप में हम उनका वंदन करते हैं

"धरती आबा" की हुंकार उठी थी गोरों की सरकार हिली थी

बिरसा मुंडा की भृकुटि तनी थी जन जातियों को अलौकिक शक्ति मिली थी


      जय बिरसा- जय भारत - वन्दे मातरम्


      चंद्र प्रकाश गुप्त "चंद्र"
      अहमदाबाद ,  गुजरात

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मैं चंद्र प्रकाश गुप्त चंद्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूंँ कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है।
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