डॉ. राजेश कुमार जैन जी द्वारा खूबसूरत रचना#

सादर समीक्षार्थ

कैसे कटेंगे अब, पहाड़ से ये दिन
बड़े ही कठिन होते हैं, सर्दी भरे दिन
कैसे है कांपता रहता, तन बदन
काम करने का नहीं, होता है मन ..।।

कैसे कटेंगे अब, पहाड़ से ये दिन 
हाथ पैर भी गलने से, लगते हैं
और चीसते भी, बेहिसाब से हैं 
खून टपकने लगता, काम न कुछ होता..।।

कैसे कटेंगे अब, पहाड़ से ये दिन
शीतलहर भी जब, चलने लगती है
कठिनाई बड़ी ही, बढ़ने लगती है 
अकेलापन भी तो, डसने लगता है ..।।

कैसे कटेंगे अब, पहाड़ से ये दिन 
तेरे बिन भी तो ये, जी नहीं लगता
कहूँ भी किससे मैं, अपनी विवशता 
 प्रभु जी सुन लो तुम ही मेरी फरियाद ..।।




डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड

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