विषय-कैसे काटेंगे पहाड़ से ये दिन
है तू मेरे दिल की है कली,
बड़े लाड प्यार से है पली,
तू जब से आई मेरी जिंदगी में,
मुझे एक अजब सी खुशी मिली।
सुबह सुबह जब तू जगती है,
तोतली भाषा में पापा कहती है,
तब मेरे दिल में स्नेहगंगा बहती है,
तेरी हर नादानी अच्छी लगती है।
पर तेरे वयस्क होने का ख्वाब मात्र,
जब जब इस पिता के मन में है आता,
विरह वेदना की कल्पना से ,
मन दुःख के सैलाब से भर जाता।
तुझे अपने से अलग कैसे कर पाऊंगा,
आत्मा से भी अधिक प्यारे टुकड़े को,
अपने से अलग कैसे कर पाऊंगा?
कैसे मैं तुझे डोली में विदा कर पाऊंगा,
कैसा हो जाएगा जीवन मेरा तेरे बिन,
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन,
काटे नहीं कटेंगे वो रात और दिन,
होगा हाल मेरा काया हो जैसे सांसो बिन।
फिर अंतरमन ढांढस है बंधाता ,
बेटी होती परायी यह ज्ञान कराता,
समाज की इस पावन गंगा में,
कन्यादान से बड़ा कोई संस्कार न होता।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी कानपुर नगर
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