विषय - मित्रता
विधा - स्वतंत्र
बचपन में सीखे थे अनेक भाव
कभी होती खुश कभी आता ताव
समझ ना पाती क्या है मित्रता
अन्य भावों से क्या इसमें भिन्नता ।
शिवाजी का सम्मान बचाने हेतु
तानाजी ने लगाया प्राण का दाँव
मित्र को देने सुखद शीतल छाँव
समर्पण बना मित्रता का भाव।
लगती थी मुझे यह कटार दुधारी
जानी जब कृष्ण-सुदामा की यारी
तब समझी कैसी भी हो लाचारी
मित्रता में ना होती कोई दुनियादारी।
जो अपने-पराए का भेदभाव मिटा दे
अच्छाई और बुराई का फ़र्क बता दे
सुख-दुख में कभी छोड़े ना अकेला
हो शुभचिंतक कैसी भी हो बेला।
जीवन में आते हैं हर पल इम्तिहान
कांटो भरे पथ मिलते रहते हैं तमाम
मन में उपजती है जब भी घबराहट
मित्रता जगा विश्वास,लाए मुस्कुराहट।
कभी बन अभिभावक राह दिखाए
निष्कलंक मन से सदा साथ निभाए
मन का मीत और हमराज कहलाता है
मित्रता जग का सबसे अद्भुत नाता है।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तरप्रदेश
0 टिप्पणियाँ