सीमा गर्ग "मंजरी "जी द्वारा अद्वितीय रचना#

काव्य सृजन ...
उमंग ~

कैसी ये तडप है, कैसा है दीवानापन? 
जिया जलाये क्यूँ ये चाँद का भोलापन?

धीरे ~धीरे धडकन में पिया मिल रहा है 
आँखों में समाकर जिया जल रहा है 

स्वरलहरी बनकर मुरली सी बजती है 
मुरली के मधुरस पे मन मयूरी नचती है 

मन की उमंगों में रंगीली सी कसक है 
पिया की छबीली छवि की मनोहर मटक है 

रक्तिम कपोंलों पे नव कोंपल सी नजाकत 
मद्धम पवन की रागिनी से चाहत 

सावन के संग जैसे बादल की बातें 
बूंदों से झरती जैसे कलियों की बातें 

रोको ना आज मुझे, जीभर के सजने दो 
उमंगों की प्रीत के मधुराग होठों पे बजने दो 

भरकर उमंग, तरंग प्रेम आराधना को रचने दो 
झूम, झूम, झूम आज, आज मुझे नचने दो 

सांवरे के प्रीत रंग में, मैं तो रांची रे 
प्रेम दीवानी मीरा घुंघरू बाँध के नाची रे 

 सीमा गर्ग "मंजरी "
मेरी स्वरचित रचना ©
मेरठ

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