मंच को नमन
बदलाव मंच
विषय - बचपन के वो खेल हमारे
शीर्षक- वो बचपन के खेल
बचपन के वो खेल हमारे
मन को भाते समय चुराते
वो बचपन की मस्ती वो बेफ़िक्री
काश आज वापस मिल जाये बेफ़िक्री ।।
खेल थे वो बड़े निराले
लगते हमको प्यारे । ।
कंचे गोटियों का खेल कराते थे मेल हमारा ,
पड़वाते फिर अम्माँ के डंडे । ।
वो लंगड़ी टांग का खेल सम्भल सम्भालकर रहना झट से फिर पकड़ना ,
अपना कालर टाइट करना ।।बचपन के फ़ंडे
कभी पंच गुट्टे खेले दोपहर को घर आँगन में मचाये धमा चौकड़ी दादी फिर लगाये धौल ।।
सुतोलियां फुगडी और छिपाछाई
अजीब ग़रीब थे ये खेल हमारे
गिल्ली डंडा और गुड्डा गुडियाँ का वाह रचाया ।
बारात और लेन देन भी करवाया
बारिश का अपना आंनद था
काग़ज़ की नाव ख़ूब चलाई
लेकर हाथ में लकड़ी नाव के पीछे पीछे भागे । ।
खेलते रहते दिन भर ,कुलाँचे भरते रहते , डाँट भी खाते मार भी खाते
बड़े मज़े का यह फ़ंडा ।
लौट के आ जा वो बचपन के दिन
फिर खेले हम चिड़िया उड़ कबूतर उड़ ।उड़ उड़ कह कर हँसते ।
बिन पैसे से खेल खेलते ,
ख़ूब मज़ा उड़ाते ,
बताशा खाकर पानी पीते ।
कभी चोर सिपाही खेले हम
पकड़ चोर को लगाते थे सोठी
, कभी दादा को घोड़ा बनाये ।
पापा से डर कर भागे ।।
कभी आँख मिचौली खेले खेल
आंखो की पट्टी से झांके ,
पकड़ी जायें चोरी हमें मिलकर सब लताड़ें ।।
कभी खो खो कबड्डी का खेल हो
न्यारा
कभी नदी तट पर लगे शर्तें कौन
ठंडे पानी में डूबकी लगाये ।
कौन पेड पर चढ कर आम तोड़े ।
कौन छत पर जा बंदरों को डराये
बचपन के ये खेल हमारे
याद बहुत आते है ।
याद बहुत आते है ।।
डॉ.अलका पाण्डेय
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