कवयित्री कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार जी द्वारा रचना ‘गोबर्धन पूजा’

गोवर्धन पूजा

भारतीय परंपरा पौराणिक सनातन धर्म के अनुरूप द्वापर युग में भगवान कृष्ण अवतरित हुए भगवान कृष्ण ने अपने व्यक्तित्व के माध्यम से अनेकों ऐसे कृतित्व किए जिससे समाज में एक नई दिशा मिली इसी श्रंखला में दीपावली के दूसरे दिन अर्थात अमावस के दूसरे दिन प्रतिपदा के दिन प्रथम दिवस शुक्ल पक्ष का उस दिन गोवर्धन पूजन किया जाता है।
इंद्र अपने घमंड में चूर होकर पूरे ब्रज क्षेत्र में अपनी पूजा और अपना अधिपत्य से पूरे जनजीवन को अस्त-व्यस्त किए हुए था अपना प्रभाव दिखाने के लिए उसने कार्तिक मास में लगातार कई दिनों तक घनघोर वर्षा की जिससे जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाए भगवान कृष्ण ने अल्प आयु में छोटी सी उम्र में अपने ब्रज वासियों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु गिरिराज पर्वत अर्थात गोवर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की उंगली पर ऊपर उठा लिया उंगली नहीं कहते हैं नख पर उन्होंने गिरवर धन पर्वत उठाया और बारिश से बचाने के लिए सारे के सारे ब्रज वासियों को गिरिराज जी के नीचे शरण दी इससे इंद्र का अहंकार जो था वह चूर चूर हो गया वर्षा रूखी और जनजीवन का गुणगान करते हुए अपने गिरधारी भगवान कृष्ण की कृपा की इस घटना को अविस्मरणीय बनाने के लिए गोवर्धन पूजा अर्थात अन्नकूट की पूजा की गई।

इसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी है पोषण संबंधी मानव के जीवन में अनेकों समस्याएं होती हैं तो यह आधुनिकता का शोध का विषय है कि रसोई में मौसम के अनुरूप आसानी से सुलभ होने वाले कंदमूल फल फल साग सब्जी अनाज जो समय पैदा होती हैं इन सब को भारतीय परंपरा के अनुसार उन्हें पकाना पर उसने और एक दूसरे को भाईचारे के साथ खिलाना यह एक आपसी सामंजस्य की भावना है और यह जो पदार्थ है यह सच है जो शरीर के लिए अति आवश्यक हैं शरीर में मौसम के अनुसार कफ वात पित्त असंतुलित होने लगता है उस दोषों का निवारण करने के लिए इस तरह का जो भोजन है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है जो व्यक्ति के शरीर को प्रतिरोधक क्षमता से परिपूर्ण बनाता है अंकुर मतलब अनाज का पर्वत बनाया गया जिसे अन्नकूट महोत्सव का नाम दिया गया।
 गोवर्धन में प्रतीकात्मक रूप से गोवर्धन वासी आज भी यह उत्सव मनाते हैं और वृंदावन गोवर्धन में ही नहीं मेरे विचार से जहां जहां धर्म को मानने वाले हैं वह मध्य में जो पर्वत बनाते हैं उसमें दूध दही इत्यादि भरते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही अच्छे माने जाते हैं।

जितने भी धर्म को मानने वाले हैं वह इस दिन दवा नहीं चढ़ाते कढ़ाई पर चढ़ा रखी भोजन बनाते हैं अर्थात मौसम के अनुकूल अनुरूप जो भोजन हमारे शरीर में ऊष्मा इसने गीता और शक्ति प्रदान करें ऐसी योजनाओं को निर्माण किया जाता है और अपनी रसोई में अन्नपूर्णा माता के माध्यम से उसको सफल किया जाता है ऐसा भी माना जाता है कि जो अन्नकूट का प्रसाद खा लेता है मां अन्नपूर्णा उनके घर में सदा वास करती हैं कभी भी धन का धन धान्य का भूषण का उस घर में अभाव नहीं होता है
भगवान कृष्ण बाल अवस्था में थे जब उन्होंने यह भूमिका अपनी दी और उनकी माता यशोदा जी अपने कृष्ण को बाल रूप में 6 बार भोजन कराती थी जब कृष्ण यादव उठने लगे तो फिर उन्हें आठों पहर में अलग अलग तरह का भोज पदार्थ दिया जाने लगा जैसे सुबह उठते हैं तो दूध पीते हैं फिर बाल भोग दिया जाता है फिर सिंगार के बाद मिष्ठान खाते हैं मिष्ठान के पश्चात राजभोग होता है फिर भगवान जब गई अचरा के लौटते हैं तो शाम को मां उत्थान में उनको देती हैं उत्थान के बाद स्थापना में देती हैं स्थापना के बाद फिर दूध पीते हैं और दूध पीने के बाद रात का चयन भोजन कराती हैं 8 बार भोजन करने के कारण क्योंकि 7 दिन तक उन्होंने गिरिराज पर्वत को अपने हाथ पर उठाए रखा तो 8 में 7 का गुणा किया जाए तो 56 होता है इसलिए एक हफ्ता 56 तरह का भोजन बनाकर गिरिराज धरण को भोग लगाया जाता है यह है मुख्य रूप से छप्पन भोग की कहानी और बिंद्रावन में तो छटा ही निराली है गिरिराज की परिक्रमा की जाती है राज की परिक्रमा करते हुए सभी श्रद्धालु जन एक ही सुर में गाते हैं गिरिराज गिरिराज गिरिराज तुम धन्य हो तुम धन्य हो मेरा जीवन आज सफल हुआ तुम धन्य हो।

गिरिराज जी की 7 कोस की परिक्रमा भी की जाती है परिक्रमा के दौरान जितनी भी प्राकृतिक दृश्य है उस समय की जितनी भी संदेश देने वाले कुंड हैं जैसे राधा कुंड कृष्ण कुंड कुसुम कुंड पूछ लिया का लोटा जितनी भी चीजें वहां पर हैं गिरिराज जी का दूध से अभिषेक करना वह सब एक कहीं ना कहीं एक संदेश देने वाले हैं जो आधुनिक युग में व्यक्ति को एक प्रेरणा प्रदान करते हैं।

 गोवर्धन की पूजा मुख्य रूप से गोधन को सुरक्षित रखने की बात है और आदमी की उम्र में जिस तरह से गोवंश नष्ट हो रहा है उसे संभालना हमारा दायित्व बनता है इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोधन याने गोवर्धन गिरधारी जी को बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है उनका दूध दही से अभिषेक किया जाता है और अभिषेक के पश्चात आरती करके उनसे प्रार्थना की जाती है कि आप हमारे देश में सुख संपत्ति स्वास्थ्य एवं पुष्पित पल्लवित होने का हम लोगों को वरदान प्रदान करें और सभी की मानसिकता को सकारात्मक स्थान से परिपूर्ण कर दें जय हो गोवर्धन महाराज आपकी।
 चार धाम की यात्रा जो बुजुर्ग अवस्था होने पर भगवान के माता पिता नंद बाबा और यशोदा जी नहीं कर पाई थी वह यात्रा भी भगवान कृष्ण ने सभी देवताओं से प्रार्थना करके चारों धाम को ब्रजभूमि में अवतरित कराया और जिससे कि उनकी बुजुर्ग माता-पिता उनके दर्शन कर सकें इसके पीछे भी यह उद्देश्य है कि हमें अपने माता-पिता की सेवा ही नहीं उनकी हर इच्छा को पूरा करना है नहीं तो आजकल यह हो रहा है कि माता-पिता को लोग वृद्ध आश्रम में या किन्हीं आश्रम में छोड़ देते हैं और उनकी खोज खबर नहीं लेते हैं एक संदेश है कि माता-पिता हैं तो हमारे सारे सृष्टि के सारे धाम उनके चरणों में हैं हमें सदा उनकी सेवा करते रहना चाहिए।
तो ब्रजभूमि में यह सारे देवता होते हैं और इन के माध्यम से व्यक्ति उन तक पहुंचता है उनके दर्शन करता है और उनसे यह वरदान मांगते हैं कि हम भी अपने माता-पिता की सेवा में सदा संलग्न रहें ऐसी कृपा हम पर करो गिरिराज महाराज जी
 गोवर्धन महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रहो
तोहपे और चढ़े दूध की धार 
तोरे माथे मुकुट विराज रहो 

पान चढ़े तो पर फूल चढ़े
 तेरे कान में कुंडल सोहे रहो
ठोड़ी में हीरालाल
 धोरे माथे मुकुट विराज रहो
तेरे गले में कंठ सोए रहो
 तेरी झांकी बनी विशाल
 तेरे माथे मुकुट विराज रहो


 तोरी 7 कोस की परिक्रमा
 चकलेश्वर है विश्राम
 तेरे माथे मुकुट विराज रहो


 तेरे सब संकट मिट जाए
 तुम पूजा कर गोवर्धन की
 तेरा जन्म मरण मिट जाए
 ताहेनंदलाला मिल जाये।।।।
 तेरे सब संकट मिट जाए



तो गोवर्धन पूजन से हमें यह संदेश मिलता है कि हमको गोधन की रक्षा करना है
कूदन के साथ-साथ हमें उपलब्ध साधनों से मिलने वाली साग सब्जी भाजी तरकारी इत्यादि का किस तरह से उपयोग करके अपने शरीर को निरोगी काया रखनी है
गोवंश की रक्षा करनी है जो नितांत आवश्यक है आज की समसामयिक समस्या हमारे सामने है।

 पैदावार होने वाली अनाजों का संतुलित रूप से उपयोग करना जिससे समशीतोष्ण उपयोगिता नियम पूरा हो सके कोई भी निर्धन गरीब भूखा प्यासा ना रह सके इसके लिए भी संदेश देता है।

 मौसम का भी परिवर्तन होता है मौसम के अनुरूप हमें किस तरह से आहार लेना है यह भी हमें वैज्ञानिक रूप से संदेश देने वाला यह त्यौहार है दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है और इसके पश्चात भाई दूज का त्यौहार आता है तो अन्नकूट के साथ-साथ आपको भाई दूज के लिए भी हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं

कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार 

गोवर्धन पूजा अन्नकूट और स्वास्थ्य इन तीनों की त्रिवेणी का सही उपयोग करें जिससे स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क मैं सकारात्मकता से परिपूर्ण सोच विकसित हो।।

 कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार जबलपुर मध्यप्रदेश

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ