कवयित्री सुखमिला अग्रवाल जी द्वारा रचना ‘मनहरण घनाक्षरी...'

मनहरण घनाक्षरी...
8,8,8,7,


रूठ गया चाँद जब,बोला प्रभु रामजी  से,
दिवाली मावस दिन,
बिसराया मुझको।



जश्न विश्व मनाकर,उपेक्षा निज सहता,
हिल मिल खुशी बना,
मैं विस्मृत तुमको।



रामजी मुस्काये बोले,अति प्रिय तुम मेरे,
वर मैं तुमको देता,
भूलें नहीं तुमको।

राम जो बोलेगा उसे,बोलना चन्द्र भी होगा,
पूर्ण *रामचन्द्र*कह,
पुकारेगें हमको।


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सुखमिला अग्रवाल
   स्वरचित मौलिक 
   @सुरक्षित्

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