कवयित्री गरिमा विनीत भाटिया जी द्वारा रचना ‘शीर्षक-नेकी की दीवार'

*नमन बदलाव मंच* 
 _बदलाव राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु_ 
 *दिनांक-15/11/2020* 
 *दिन-रविवार* 
 *विधा-गद्य (लघुकथा )* 
 *विषय-दीपोत्सव* 

 *शीर्षक-नेकी की दीवार* 

प्रसन्न एक बहुत ही समझदार व होनहार बच्चा है कुछ दिनों पहले की ही बात है उसकी माँ दिवाली की सफाई व सामान की छँटाई कर रही थी माँ ने प्रसन्न को आवाज दी और सामान बाहर फेंकने को कहा। वह सामान बाहर फेंक ही रहा था कि पीछे से एक काँपते स्वर में आवाज आयी , बेटा! ये मोटा कम्बल क्यूं फेक रहा है ? मुझे दे दे । पर अम्मा ये तो फट गया है ये अब किसी काम का नही ।अम्मा ने कहा, बेटा मेरे पास कम्बल खरीदने के पैसे नहीं मैं इसे सिल के ठीक कर लेती अगर तू मुझे यह दे दे तो । प्रसन्न ने वह कम्बल अम्मा को दे दिया कम्बल मिलते ही अम्मा का चेहरा खिल गया जैसे उसकी वर्षों  पुरानी जरुरत आज पूरी हो गयी हो । प्रसन्न को भी अम्मा को कम्बल देने के बाद अपार सुख का अनुभव हो रहा था उसने यह घटना माँ को बतायी माँ ने कहा बहुत अच्छा किया तुमने , मुझे तो ये सिलना आता नहीं ।  
पर अभी भी प्रसन्न को सन्तुष्टि कहाँ हुयी थी ।घर से निकल गया एक चॉक लेकर और एक मन्दिर के बाहर की दीवार पर कुछ सोचते हुए लिख दिया आज मुझे नेकी कर बहुत खुशी हुयी है इसलिए मैं एक नेकी की दीवार बना देता हूँ दीवार पर नेकी की दीवार लिख दिया और घर का छँटा सामान वहाँ रख दिया ।
एक रंगभरिया दीवाली के निकट आने के कारण मन्दिर की दीवारॊ को रंग रहा था उसने कहा बेटा ये सामान हटा ले ये सामान यहाँ क्यू रख दिया है ?ये तू क्या कर रहा है??  प्रसन्न  ने जवाब दिया काका ये मेरे घर का वह सामान है जो मेरी जरूरत का नही है ।जिसकी जरूरत का होगा वह यहाँ से ले जाएगा । ये दिवार मैंने नेकी करने के लिए तैयार की है रंगभरिया ने प्रसन्न की ऎसी सोच में रंग भर दिए व उसकी नेकी की दीवार रंगो से सजा दी । रंगभरिया ने कहा , बेटा मैंने तेरी नेकी की दीवार सजा तो दी पर लोंगों को पता नहीं है नेकी क्या होती है ? प्रसन्न ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि क्या उनकी दादी ने बताया नहीं कि हम सब को मिलवाट के एकता से रहना चाहिए सब की जरूरतों में काम  आना चाहिए हमें जब जरूरत होती है तब लोग भी हमारी जरूरतों में काम आते हैं हमें नेकी करते रहना चाहिए।
 प्रसन्न की ऎसी समझदारी भरी बातें सुन रंगभरिया ने नेकी की दीवार पर दादी के पल्लू में बँधी सिक्कों की खन खन में लिपटी सिमटी कुछ सीख का एक पहलू लिख दिया *"जिनके पास ज्यादा हैं वो यहाँ छोड़ जाएं और जरूरतदमंद ले जाएं"* और नेकी की दीवार की अपूर्णता को पूर्ण कर दिया ।
 पर खुद एक गहरी सोच में डूब गया यदि पैसे कमाने की होड़ में हम भाई अलग नहीं रहते, मिलजुल के माँ के साथ रहते तो मेरा बेटा भी इतना समझदार होता 
 *"कितनी समस्याओं का समाधान है ,दादी-नानी की बड़ी कहानियों में ।* 
 *पग पग संभले हैं वो ,जो टूट जाते हैं ,नादानियों में खडी़ परेशानियों में ।।"* 

मैं *गरिमा विनित भाटिया* *अमरावती महाराष्ट्र* से यह लघुकथा मैंने आगरा में स्थित एक दीवार की चित्रकारी को देख स्वरचित की है ।
        इस कथा के सभी पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक हैं मेरी रचना का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पणी करना नही है रचना का उद्देश्य नेकी के प्रति जागरूकता है व दिवाली में जरूरतमन्दों के लिए चिन्तन कर कुछ विशेष करने का सुझाव है ऎसी दिवारे हर गली हर मोहल्ले में होनी चाहिए ।
        
        
 *बहुत बहुत आभार* 
 *बदलाव मंच* 
 *गरिमा विनित भाटिया* 
 *अमरावती महाराष्ट्र*

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