कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी "प्रचंड" द्वारा 'हम सब का गौरव बिरसा' विषय पर रचना

शीर्षक- हम सबका गौरव बिरसा  

अंग्रेजों  के  शासन काल में  तहलका मचाया था।
आये  व्यापारी  भारत में बसे समझ न आया था।।

जब - जब  भी  चली  अंग्रेजों की  बायर चलती।
सन्नाटा पसर जाता जब वीरों की टोली विचरती।।

अंग्रेजों  के  जब  कितने  हम पर अत्याचार हुए।
धरा कष्ट सहकर बोली ,वीरों तो के अवतार हुए।।

वन को  सरंक्षण  देने  वाले हम सब जनजाति है।
निर्धन परिवार में जन्म लिया बिरसा की ख्याति है।।

सब भोले तन मन वाले धर्म बदलते दे पीड़ा हुई।
धर्म  बचाने  हेतु  धनुष  बाण से तब कीड़ा हुई।।

शिक्षित  महानुभाव  हुए  नही थे रहते जंगल में।
प्रकृति  के  पूजक  रहे  हारे नही कभी दंगल में।।

मिशनरी के स्कूल में ज्ञानार्जित पढ़ते रहे बिरसा।
परचम जाति का लहराकर आगे बढ़ते रहे बिरसा।।

ठान लिया धर्म हमारा हिन्दू हम प्रकृति पूजक है।
हम तुलसी,नदियों को माने ये प्राणों की सृजक है।।

मन  में एक  छवि  बसी  भारत माता आजाद रहे।
हौसला अटल बिरसा का अंग्रेजों से फौलाद रहे।।

आयुर्वेद के धनी ज्ञान में अग्रणीय बिरसा रहे सदा।
दिन दुःखी रोगी की सेवा करते बिरसा रहे सदा।।

जब - जब जनजाति बन्धुओं पर अत्याचार होते।
नाम सुनकर अंग्रेजों के सैनिक आँखे भर  रोते।।

न कोई बंदूके थी उनकी उस छोटी सी टोली में।
अनवरत चलना खाने को रोटी नही थी झोंली में।।

वीरता का अध्याय लिखते चलते रहे अरमानों से।
शत्रु पक्ष पर वार कर लड़ते रहे तीर कमानों से।।

अंग्रेजों की  सब चाले नाकाम हुई थी जंगल में।
तब बिरसा के संग रहते बन्धु आनन्द मंगल में।।

घर के भेदीयों का मन दौलत खातिर डोल गया।
कहाँ छुपा है आज बिरसा घर भेदी बोल गया।।

भारत माता के सपूत को जंज़ीरों ने जकड़ा था।
भगवान चला गया बोले जब अंग्रेजो ने पकड़ा था।।

शत्रु  दल  के बोले  जीवित  रहा तो विद्रोह करेगा।
मार  दो  इसे नही तो ,यही  नाक  में  दम करेगा।।

जन - जन  के  हृदय का  सेवाभावी तारा टूट गया।
दो कौड़ी के लालच में भगवान का साथ छूट गया।।

जय  भारती  की करने लक्ष्य का संधान किया था।
युवा  पीढ़ी  को  धर्म रक्षा का सदा ज्ञान दिया था।।

यह  भारत  तो  सदा घर के भेदीयों से छला गया।
धरती मां सुनी हुई जंगल का भगवान चला गया।।

विष  देकर  कह  दिया बीमारी  से अवसान हुआ।
सबका गौरव था उसका 9 जून को निर्वाण हुआ।। 

जग ज़ाहिर  वीरों  का भारत भू पर अभिनन्दन है।
हे भगवान बिरसा आपको कोटि - कोटि वंदन है।
          - कृष्णा सेन्दल तेजस्वी "प्रचंड"
        (राजगढ़ मध्यप्रदेश)

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