कारवाँ
कारवाँ शब्द ही है ऎसा,
मन में गुदगुदी उठ जाए वैसा,
खीचता हमें ये चुंबक जैसा,
जहाँ-जहाँ गुजरता है कारवाँ,
वहाँ-वहाँ खुशियों का होता रेला|
एक जमाना था जब भरा पूरा,
परिवार भी था एक कारवाँ,
आधुनिक हो गया जमाना,
संयुक्त से एकल हो गया ।
कारवाँ एक शब्द नहीं,
लोगों के जज़्बात है सही,
जो आज मशीनी,
दुनिया में खो गया है कहीं,
तीज, दीवाली हो या होली,
जुट जाता था कारवाँ हर गली,
अब तो हम अकेले तुम अकेले
मना लो हर त्योहार युँ ही हमजोली।
आज सिर्फ एक मनभावन,
शब्द बन कर गया है कारवाँ,
सुना है, बढ़ती जा रही दुनिया,
0 टिप्पणियाँ