राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थापक अध्यक्ष दीपक क्रांति द्वारा 'वेश्या' विषय पर लघुकथा


लघुकथा....

वेश्या

"तुम इस तरह के काम क्यों करती हो ?"
"आपको क्या मतलब साहब "
"नई, ऐसे ही पूछ रहा हूँ.. "
"जैसे आप नौकरी करते हो, ये आपका काम है, वैसे ही मैं भी अपनी नौकरी कर रही, बात खल्लास"

मैंने थोड़ी सहानुभूति से पूछा, "देखो, मैं सोचता था कि तुम बहुत कमा लेती होगी, लेकिन आज दुकान में बच्चे का बोतल वाला दूध खरीदते देखा, तो रहा नहीं गया"

अंत में वो मातृ-हृदय फट पड़ी "साहब, मैं बहुत गरीब हूँ, जहाँ भी काम करने गई, वहां के मालिकों ने मेरे साथ गलत किया, पढ़ी-लिखी नहीं हूँ साहब वरना मैं भी मेमसाब जैसा नौकरी करती..

"मुझे ड्यूटी में देर हो रही है साहब... अभी कुछ महीनों से धंधा भी चौपट है..और हाँ साहब, अब से आप मेरे को भाषण मत देना, हो सके तो इज्जत वाली नौकरी दे देना"

उसके शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे....

दीपक क्रांति, झारखंड

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