गीता पांडे रायबरेली जी द्वारा खूबसूरत रचना#

विषय भ्रष्टाचार
 विधा स्वतंत्र

भ्रष्टाचार की जड़ें समाज में गहराई से हैं छाई।
 चाह कर भी इसकी नहीं कर पा रहे हैं सफाई।

भ्रष्टाचारी व्यक्ति प्रस्तुत करता भावना नाटकीय।
सोच समझ कर ही हम करें इनका अनुकरणीय।

 अनुचित लाभो में कानून विरोधी कार्य करते।
सामाजिक धार्मिक नैतिक आदर्शों को है वे तोड़ते।

 चुनाव प्रणाली का दोष युक्त, शिक्षा का गिरता स्तर।
धनाढ्य की लालसा भ्रष्टाचार  को पहुंचा रही शिखर।

 चलचित्र दूरदर्शन पाश्चात्य सभ्यता का बढ़ता प्रभाव।
राष्ट्रीय चरित्र व अच्छे साहित्य का बना हुआ अभाव।

 पुलिस विभाग प्रशासकीय व दंड व्यवस्था है भ्रष्ट।
 बेटियां  रोज दरिंदों की भेंट चढ़ रही  बड़ा ही है कष्ट।

आज समाज में गंभीर समस्या बन दे रहा चुनोती।
भ्रष्टाचार फैलाने वालों ने इसे तो समझा है बपौती।

घूसखोरी ,व्यभिचारियों की सीमाएं बढ़ती जा रही हैं।
मरे हुए मनुष्यों के साथ भी भ्रष्टाचार  गढ़ती जा रही है।

आज जरूरत बन गई है भ्रष्टाचार पर चिंतन करने की।
दीमक की तरह देश चाट रहा इस पर मंथन करने की।

 भारतवासी मिलकर भ्रष्टाचार की नींव को हिलावो।
   गीता कहती है कि भ्रष्टाचारियों को देश से भगाओ।


 स्वरचित व मौलिक
गीता पांडे रायबरेली उत्तर प्रदेश

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