कवयित्री शशिलता पाण्डेय द्वारा 'हृदय' विषय पर रचना

हृदय
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स्वच्छ बनाकर अन्तर्मन को,
निज हृदय के पट खोल ले प्राणी।
मुस्कान सजाकर अधरों पर,
मुख से बोल सदा तू मीठी वाणी।
प्रज्ज्वलित करले प्रेम की ज्योति
मिला ले हृदय से हृदय का निर्मल भाव। 
सीधा-सरल कोमल मन के मानव को,
नही देना कभी हृदय पर कोई घाव।
बने संगम जैसे गंगा,यमुना ,सरस्वती,
निर्मल हृदय ईश्वर, मानवता ही पूजा।
करो पर-पीड़ा हृदय वेदना की अनुभूति,
प्रेम से बढ़कर जगत में धर्म ना दूजा।
जगा लो हृदय में प्रेम हर जीव के प्रति,
निज हृदय की गहराईयों में झाँक कर।
अन्तर्मन की खूबसूरती को माप लो।
देकरअधरों पर किसी को स्मित मुस्कान,
अद्भुतआनंद की अनुभूति को नाप लो।
ईश्वर को ढूंढे प्राणी यहाँ-वहाँ तीर्थस्थान,
जिस हृदय प्रेम,दया, वहीं ईश्वर का वास।
परसेवा करो परोपकार यहीं ऊँचे संस्कार,
हृदय में धारा प्रेम की ईश्वर सा मन का भाव।
किसी के कोमल हृदय पर करो न तीक्ष्ण प्रहार,
इस संसार के सागर में नही डूबेगी कही नाव।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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