कवयित्री रजनी वर्मा द्वारा 'कार्तिक पूर्णिमा' विषय पर रचना

**नमन मंच** 
**दिनांक - 30/11/ 2020/**
**बदलाव अंतरराष्ट्रीय रा**
**विषय - कार्तिक पूर्णिमा**

**विधा - कविता**
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दोने में धरकर अपने-अपने फूल,
अपने-अपने दिए,
आज सिरा रहे हैं लोग, 
और मन्नतो की पीली रोशनी में, 
चमक रही है नदी। 

टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पाते, 
सांवली स्लेट पर,
जैसे ढाई आखर हो कबीर के,
कास के फूल देख रहे हैं,
खेतों की मेड़ों पर खड़े,
दूर से यह उत्सव।

गांव चमक रहा है,जैसे 
नागकेसर धान से,
भरा हुआ हो कास का कटोरा, 
पांव में गड़ा हुआ कांटा, 
आज भूले रहे थोड़ी देर हम,
झरते रहे चांदनी के फूल, 
हमारी नींद में आज बहता रहे, 
सपनों-सा मीठा जल।



**रजनी वर्मा*
 **भोपाल**

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