कवि जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय 'जीत' द्वारा 'चन्द्र ग्रहण' विषय पर रचना

*चंद्रग्रहण*

चाँद भी कितना बदनसीब है न 
ख़ूबसूरत लगता है पर लोग कहते हैं चाँद में भी दाग है।

दिवाकर भी कितना ख़ुशनसीब है न 
तीव्र प्रकाश है पर लोग कहते हैं दिवाकर बेदाग है।।

चाँद में आशिक़ अपनी मोहब्बत का दीदार करते हैं फिर भी चंद्रग्रहण लगता है।

उगते और डूबते हंस में छठ में आराधना करते हैं फिर भी सूर्यग्रहण लगता है।।
©® *जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय 'जीत'*

*रचना मौलिक और अप्रकाशित*

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