कवयित्री कल्पना गुप्ता द्वारा 'सच्चा प्रेम' विषय पर रचना

सच्चा प्रेम 

तुम रहते संग मेरे पास हो
चमकते उजाले में बन परछाई
लगते बहुत खास हो
आंखें मूंद लेती हूं मैं
तुम एक प्यारा सा एहसास हो
तन्हा हो कर भी ना होते हम तनहा
क्योंकि हर सांस में बसे हो तुम
रहते हर पल मेरे साथ हो
परछाई है सत्य की
दिल में बसी मूरत का तुम वास हो
जब तक लिखा है यह जीवन
तुम ही आती जाती श्वास हो
फिर क्यों कभी उठता है प्रश्न
जिसको हल करना ही जीवन की आस हो
सच्चा प्रेम क्या है केवल एहसास है
शब्दों से परे नजरों से दूर
हवाओं में रखता परवाज हो
बस केवल शहनाज हो
सौंदर्य से परिपूर्ण
सब कुछ होने पर भी करता नाज़ हो
सच्चा प्रेम तो हवाओं से
सुनाई देने वाली आवाज़ हो
खुद को खुद मैं ना पाकर
प्रेम की धुन में बजता साज़ हो
वह हर सवाल जवाब से दूर
अलग ही रखता अंदाज हो
रहते जो दिल के करीब,
लगते सबसे खास हो।

कल्पना गुप्ता/रतन

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