कुछ वक्त होता मेरा , तो त्योहार जैसा होता।
रखती हूं ध्यान सबका , जी जान मैं लुटाकर ।
कोई ध्यान मेरा रखता , तो उपहार जैसा होता।
लिए हाथ में फफोले ,परोसती हूँ प्यार के निवाले।
कोई चूमता हाथों को , तो प्यार जैसा होता।
बनी मैं वृक्ष वट की , सबको समेटे हुए आँचल में।
मुझे भी मिलता। आँचल , तो संसार जैसा होता।
कभी टूटती #किरण जो ,तो बनता कोई सहारा।
बस एक साथ देता , तो हज़ार जैसा होता।
शोभा किरण
जमशेदपुर
झारखंड
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