शोभा किरण जी द्वारा खूबसूरत रचना#

मैं  ढूंढती  हूँ  कुछ   पल  ,  जो इतवार जैसा होता।
कुछ     वक्त    होता  मेरा  ,  तो त्योहार जैसा  होता।

रखती  हूं  ध्यान  सबका  ,  जी जान  मैं  लुटाकर ।
कोई   ध्यान  मेरा    रखता , तो उपहार जैसा होता।

लिए हाथ  में  फफोले  ,परोसती हूँ  प्यार के निवाले।
कोई     चूमता  हाथों  को   ,  तो प्यार  जैसा   होता।

बनी  मैं   वृक्ष  वट  की ,  सबको समेटे हुए आँचल में।
मुझे   भी  मिलता।  आँचल , तो  संसार जैसा होता।

कभी  टूटती   #किरण   जो  ,तो बनता कोई सहारा।
बस     एक    साथ   देता  ,   तो  हज़ार  जैसा  होता।

शोभा किरण
जमशेदपुर
झारखंड

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