इच्छाये दुख के कारण जग में #अनिल मोदी जी द्वारा खूबसूरत रचना#

विषय :- इच्छाये दुःख के कारण जग में
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इच्छाये इंसान की कभी पुरी नहीं होती।
इच्छायें पुरी होनी भी नहीं चाहिये,
इच्छा रहित इंसान संत बन जाता है।
इच्छा है पाने की, कुछ कर गुजरने की, उद्यम की प्रेरणा मिलती है।
बीत जाता है जीवन। 
मन सदा नई नई इच्छाये रचता,
इन्ही इच्छाओं के कारण कई
परेशानियाँ जनम लेती, कई उलझे सुलझती।
आवश्यकता से अधिक इच्छायें ही जीवन को क्लेशकर बनाता है।
इच्छा बलवती मैं सर्व संपन्न परिवार पाऊं,मगर उसके लिये मैं स्वयं सक्षम कितना?
आकलन नहीं होता। 
सुन्दर और शांत जीवन जीना है, इच्छाएं सिमित जरुरत मय करना ही उचित है, वरना तकलीफ और दुखः का दरिया चारो ओर है।
अनिल मोदी,चेन्नेई

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