कवयित्री पूजा नबीरा द्वारा 'चिठ्ठी वो चिट्ठी.......' विषय पर रचना

चिठ्ठी वो चिट्ठी.......
7/12/20
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सन्देश हाँ सन्देश देती वो स्नेह से भीगी पातियाँ
समेट लेती थी एक मन के  पूरे के पूरे  जज्बात...
उस  अथाह  गहरे समंदर में जब मन  लगाता न गोता 
तो कितने ही स्वप्निल से संसार  खरीद लाता पल भर में....
शब्दों से शब्दों  के मोती  अंतर्मन के धागे  से पिरोये हुए...
कितने अपनेपन से स्नेह थाल में करीने से सजाये जाते ...
माधुर्य स्पर्श का समेटे औऱ  भावों की कोमलता की चाशनी  में पकाये हुए .......
कितनी बार मिटा- मिटा  कर लिखे नये -नये से शब्द.......
अधूरे को पूरा करने में  कितनी ही  रातों के  एकांत लम्हे समेटे......
ऊष्मा सारे हृदय की  अपने में सोख कर
उकेर देते पूरा मन ज्यों की त्यों....
 आसपास की सुगंध  औऱ परिवेश 
कलम की नोंक में होकर समाहित 
 बन जाते  लफ्ज किसी लिफाफे में महफूज खुशबू.....
प्रीत की पातियाँ हौले से खोली जातीं...बडे .जतन से 
पहले  जगाती मन- तन में सिरहन सी....चिठ्ठी वो चिट्ठी
समेट लेती थी एक मन के  पूरे  जज्बात...
एक साँस में पढ़ी  जाती रहीं पूरी की पूरी...
कर  अहसासों को काबू में  उतर जाते शब्द रूह की गहराई में.....
फिर अनगिनत बार उसे धीमे धीमे
पढ़ा जाता....
हर शब्द की मधुरता को छूने की
कोशिश में.....
देर तक वो महकते रहते मन के 
गलियारे में.....
फिर कई दिनों तक आस-पास देते रहते सुरभित अहसास.......
गूंजती पदचाप मस्तिष्क से दिल तक सालों साल....
कैद हो जाती उसमें जीवन की अनमोल सी याद...
जो देती जीवन को मधुर मधु सा अहसास....
महसूस होती थरथराहट   ...... सन्देश लाने बाली  पाती को खोलते  वक्त....
मानो थम ही जाती हों साँसे
जब परत दर परत खोलती उसे
कोई कैसे इसकी गर्माहट उनको
समझाये.....
जिस पीढ़ी ने मैसेज की अधकचरी  दुनिया ही पाई....
शब्दो की अनोखी दुनिया ओझल हुई है 
 इमोजी के भरोसे सन्देश रूखे सूखे से....
कोई बताये क्या हो पाये ये भावों से भरी चिट्ठी के पर्याय....
श्रीमती पूजा नबीरा
काटोल नागपुर
महाराष्ट्र
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित

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