कवि बाबूराम सिंह द्वारा 'सतत भलाई कर' विषय पर रचना

अन्तः से शिध्र जाग सतत् भलाई कर
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जन मानस जग जीवनको सुखदाई कर,
अंतः  से  शिध्र  जाग  सतत् भलाई कर।
जन्म जीवनकर सुफल सदा हरि भक्तिसे,
परोपकार  , परमार्थ    में    दृढ़ताई कर।
अतिशय दारुण दुख दायक यम यातना,
अन्तः से  शिध्र  जाग  सतत् भलाई कर।

मात- पिता, गुरु-विप्र चरण में स्वर्ग बसे,
श्रध्दा  भाव  से  पूरित  पांव पुजाई कर।
गहन  गति  कर्मों   की   है अद्भुत न्यारी,
बच  दुर्गुण  से  चेत   ना  कभी बुराई  कर।
व्देष दम्भ छल कपट लपटसे निकलजरा,
अन्तः  से  शिध्र  जाग  सतत् भलाई  कर।

जाग अन्तः से  अचूक  ज्ञान सोटा लेकर,
काम  क्रोध लालच की सजग पीटाई कर।
यश पद लिप्त निज  स्वार्थ है व्यर्थ सदा,
बेच ईमान  मत अपनी जगत हँसाई कर।
माया मोह विकट  से सदा बंँच के जग में,
अन्तः से  शिध्र  जाग  सतत् भलाई  कर।

घूस - रिश्वत  चोरी  गोबध  है  महा पाप,
इसे  बन्द करने  की  सतत्  कडा़ई कर।
देश    सुरक्षा   निज    की   रक्षा है प्यारे,
बांध  कफन माथे पर बढ़ अगुआई  कर।
श्रेष्ट  योनि मानव  का मिले ना पुनः पुनः,
अन्तः  से  शिध्र  जाग सतत् भलाई  कर।

भारत की संस्कृति सभ्यता अति पावन,
सद्भाव   शुभ  सदगुण  में  गुरुताई कर।
क्या लाया क्या  ले  जायेगा  सोच जरा,
नेक  नियत  से  नेकी  पुण्य कमाई कर।
वचन   कर्म   एक   नेक   करके अपना ,
अन्तः  से  शिध्र  जाग सतत् भलाई कर।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)841508

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