कवयित्री प्रियंका साव द्वारा 'मैं तेरे काबिल बनू' विषय पर रचना

*मैं तेरे क़ाबिल बनू*


   माँ तूने राह में चलना तो सिखा दिया
   मैं उस राह पर चलने के काबिल बनू।  

   तेरी उंगली ने जो बोझ सहा, 
   मैं भी उसे सहने के काबिल बनू। 

   तूने अपनी गोद में जो जगह दी, 
   मैं उसमें रहने के काबिल बनू।
 
   तेरी करुण ममता की छाँव में 
    जो स्नेह मुझे मिला, 
   मैं उसे समेटने के क़ाबिल बनू। 

    जो संस्कार मुझे, तुझसे मिला *माँ* 
    मैं उसे निभाने के क़ाबिल बनू, 
    माँ बस मैं तेरे क़ाबिल बनू। 

    स्वरचित कविता  - प्रियंका साव
    पूर्व बर्द्धमान, पश्चिम बंगाल

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