कवि डॉ. सुनील कुमार परीट 'अहंकार' विषय पर रचना

*।। अहंकार ।।* 

अहंकार का मद जब चढ जाता है
आंखों के आगे अंधकार छा जाता है
माता पिता न भगवान दिखता है
पंडित भी अज्ञानी बन जाता है ।।

अहंकार जब सिर चढ जाता है
रिश्ते नातों का मोल नहीं रह जाता है
आवारा पागलों की तरह घूमता है
इंसान होकर भी प्यार भूल जाता है ।।

अहंकार जब जुबान पर चढ़ जाता है
नैतिकता की सारी हदें भूल जाता है
तब अपने भी पराए हो जाते हैं
मीठे वचन का अनुसरण भूल जाता है ।।

अहंकार जब जीवन में आ जाता है
जीवन का आनंद निकल जाता है
अहंकार द्वेष का मूल कारण होता है
अहंकार पल-पल गम दे जाता है ।।

 *डॉ सुनील कुमार परीट* 
बेलगांव कर्नाटक
वरिष्ठ हिंदी अध्यापक,कर्नाटक

यह मेरी स्वरचित एवं मौलिक रचना है।

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