कवि रूपक द्वारा 'मन का सवाल' विषय पर रचना

मन का सवाल........

जब कहीं सवालों से मन मेरा व्याकुल
 और विचलित होकर तड़पता है
जब सही ज़बाब कहीं नहीं मिलता है।
तब पिरोकर शब्दों को कागज पर भाव निकालता हूं।
जब कहीं कोई लाचार, बेबस किसी के जुल्म से और
 मजबूरी से पीसकर घुट घुट कर कोई मरता है
ये देखकर इन आंखो से खून के आंसू निकलता है
इन सारे सवालों का जबाब पाने के लिए लिखता हूं
इन कारण के जो भी जिम्मेदार है चाहे वो इंसान हो 
या भगवान उसको अपने अदालत में खड़ा करता हूं।
अपने सारे सवालों का ज़बाब पाने के लिए लिखता हूं
ना जाने लोग क्या मुझे समझते होंगे 
ये  पता नहीं आस्तिक  या नास्तिक  जो भी समझे।
जब जब मेरे मन में ऐसा सवाल उठेगा और 
 किसी और का आंसू मेरे आंखो से निकलेगा
तब तब उसे अपने सवालों के घेरे में उसको लाऊंगा
और उनसे इन सारे सवालों का ज़बाब मांगूंगा।
जब किसी और को खुश देखता हूं
 तभी मेरा मन भी खुश होता है ।
दर्द औरों की हो और वो मुझे भी तड़पती है
ना जाने वो कैसे खुश होते हैं या खुशी रहते है।
जब उसके ही आंखो के सामने 
कई बेसहाय , लाचार लोग तड़पते रहते है।
कैसे इंसान अहंकार के रंग में रंग जाते है?
और छोड़ देते है इनको ऐसे ही तड़पने के लिए
कैसे अंदर की इंसानियत को मारकर ये जिंदा है?
रुपक को ये आश्चर्य होता है क्या ये इंसान ही है!
©रुपक

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