कवि सतीश लाखोटिया द्वारा 'किसान' विषय पर रचना

किसान

किसान की परिभाषा
मेरी नजरों में
कुछ इस तरह
बातें करते सभी
किसान के भलाई की
 खिलाकर हमको दाना - पानी
संघर्ष कर रहा
स्वयं के उत्थान के लिए
आज भी इस  धरा पर

उसका और आसमान का
 बड़ा ही गहरा नाता
 आसमान पर नजर गड़ाए 
वह अपना हल 
खेत खलिहान में चलाता

इंद्रदेव से उसकी
बनी नही आज तक
कभी गीला अकाल
कभी सूखा  अकाल
इन्हीं में 
उलझा रहता वह अक्सर

 कभी-कभी 
इंद्रदेव  कर दे कृपा
रहता नही 
उसकी खुशी का ठिकाना
सोचता वह
इस बार होंगी अच्छी फसल
अब नहीं पड़ेगा
किसी साहूकार के 
द्वार पर जाना

ऊपर वाले की कृपा से
हो जाता वह खुश
 फसल अच्छी होने पर
 ताने-बाने बुन लेता बहुत कुछ

 जब सरकारी मंडी में
पहुँच जाता अनाज
नहीं मिलता उचित मूल्य
 धराशायी हो जाते सारे सपने
दिल हो जाता उसका तार-तार

 चक्रव्यूह में
  हमेशा ही फंसा रहता किसान
यही कटु सत्य
कभी ऊपर वाले
कभी नीचे वाले भगवान की
मेहरबानी का 
होते रहता इनके जीवन पर असर

 ऐसा नहीं
 धरा पर के 
सारे के सारे किसान
दुखी है बहुत
 अल्प बहुत खुश
 बहुतेरे दुखी
  यह भी एक सच

  आज भी
  लड़ रहा किसान
  अपने हक के लिए
   पंजाब से  निकली आवाज
  पहुँच गई दिल्ली के सड़कों तक
  करें सरकार पुनर्विचार
  अपने किये  हुए निर्णय पर

किसान और संघर्ष का
चोली दामन का साथ
ऐसे ही चलेगा 
इनके जीवन रथ का पहिया 
यह सौ टके की बात

नेता से लेकर कलमकार
कितनी भी आवाज उठाएं
अन्नदाता के लिए
सच तो यह 
कभी ईश्वर, कभी सरकार
के भरोसे ही
यह जियेंगा
मरते दम तक ।। 

सतीश लाखोटिया
नागपुर, महाराष्ट्र

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