कल्पना गुप्ता जी द्वारा अद्वितीय रचना#

मैं  टुकड़ों  में  बटा  तेरे   वास्ते
दिख रहे  हैं  बंद आगे के रास्ते।

बिखरा मैं, हुआ  बहुत   दरबदर
दफन हुआ देख तेरी झूठी चाहते।

इधर निकल रहा था जनाज़ा मेरा
उधर वह झूम रहे थे गाते नाचते।

सदियों से हूं भूखा उसके प्यार में
अपना समझ ना दी किसी ने दावतें।

आज  उसी  ने  काट  खाया  मुझे
उम्र  गुज़री  मेरी  जिसको  पालते।

धोखा  मिला  मुझे  उसी  के हाथों
जिसकी  हर  बात  रहे  हम मानते।

दंग  रह  गया  देख  मैं  रूप उनका
फूलों भरे चमन से गुज़रा मैं हांफते।

कल्पना गुप्ता/ रतन

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