सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"झज्जर जी द्वारा खूबसूरत रचना#

किसान को क्या मिला
जिसने सबको बैठाकर खिलाया
जिसने अनवरत अन्न उपजाया
कोई पूछे इन सरकारों से 
राजनीति के मक्कारों से
काग भी बने फिरते बगुला
टूटा गलतफहमी का किला
ऊपर अंबर नीचे कीचड़ पीला
आखिर किसान को क्या मिला


हर दिन मिलती बददुआ है
समाज का विध्वंस हुआ है
नेता अपनी कुर्सी बचाते
चरित्र का पतन हुआ है
रात - दिन उसने एक किए हैं
पसीने से कतरे सींचे हैं
बात नहीं सुनता निचला
उसको उसका हक़ दिला
सोच कब उसका थैला सिला
आखिर किसान को क्या मिला


किसानी नहीं इतना आसान है
ये भी एक बड़ा काम है
ठंडी चलती शीत हवाएँ
जून का चिलचिलाता घाम है
उसका उपजाया अन्न हम खाते
किंतु नहीं मिलता पूरा दाम है
भूख -प्यास से हाथ चलाते
कंठ हो गया काला - नीला
आखिर किसान को क्या मिला


उसका भी अपना परिवार है
उसपर भी ज़िम्मेदारी भार है
वो तो मेहनतकश है बंदा 
नहीं कहीं से भी लाचार है
जैसे चलती है दुनियां चला
मत उसके जज़्बात हिला
उसके भी हालात समझले
उसके सर कितना बोझ धरा
आखिर किसान को क्या मिला


उसपर भी लाखों विपदाएं हैं
उसकी भी लाखों चिंताए हैं
कोई नहीं समझता उसको
उसके भी अंदर कुंठाएं हैं
नहीं उसका सम्मान किया
राजनीति ने उसको कुचला
"उड़ता" कोई पूछे सबसे
आखिर किसान को क्या मिला


स्वरचित मौलिक रचना 

द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )

udtasonu2003@gmail.com

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