परिंदों सा.....जी द्वारा खूबसूरत रचना#

परिंदों सा.....
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नभ छूने दो~
बेटियों को परिंदों
सा उड़ने दो
काटों न पर~
बेटियों की झोली  में
खुशियाँ भर
भर हौसला~
बेटी को बनाने दो
ख़ुद घोसला
ख़ुशी ढूंढ़ती~
उन्मुक्त गगन में
हँसी गूँजती
खुला वितान~
बेटी के सपनों को
भी दो उड़ान
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निर्मल जैन 'नीर'
ऋषभदेव/उदयपुर
राजस्थान

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