कवि मास्टर भूताराम जाखल द्वारा 'बाबा साहेब' विषय पर रचना

*बाबा साहेब*

उदय हुआ था एक महान ज्ञानी क्रांति सूर्य,
14 -04-1891 को महू में बजने लगे तुर्य।
माता भीमा बाई पिता राम जी सकपाल,
आया था एक युगपरिवर्तनकारी एक बाल।।

अतिशूद्रों में था उनका अछूत महार परिवार,
जैसे करने आया था वह व्यवस्था सुधार।
पढ़ने की उम्र में जब पढ़ने जाये वह बाल,
अमानवीय व्यवस्था से हुआ वह बेहाल।।

झेल बेशुमार दर्द करते है वे मैट्रिक पास,
छूआछूत भेदभाव से प्रभावित हुए खास।
व्यवस्था मिटाने को ऐसी मन में ले ठान,
पढ़ बुद्ध चरित उनको जरा हुआ भान।।

देख प्रतिभा बाल की,सयाजीराव हुए दंग,
भेजा राजा ने पढ़ने विदेश,छात्रवृति के संग।
पढ़ लिख कर विदेश में,हकीकत को जाना,
अमानवीयता के असली अरि को पहचाना।।

मानवता के वास्ते कई संघ संगठन बनाये,
शोषितों,पिछड़ों को  भीम ने हक बताये।
आंदोलन से वंचितों को जल हक दिलाया,
सर्वप्रथम उसी भीम ने तरवर जल पिलाया।।

जब देश हुआ आजाद,बनाने को संविधान,
याद आया तब नेताओं वह विश्व विद्वान।
सौंपी संविधान निर्माण की उन्हें जिम्मेदारी,
जिसके बने संविधान से प्रजा सुखी है सारी।

बना के संविधान सबको समुचित दिये हक,
समानता स्वतंत्रता न्याय बंधुता है बेशक।
अर्थशास्त्री,दर्शनशास्त्री,ज्ञानी महान लेखक,
विधिवेत्ता,विख्याती मानवता के सेवक।।

मानवता वास्ते किया धम्म को स्वीकार,
दे दिये सर्वजन को मौलिक अधिकार।
बन गई जनता सदा के लिये बलिहारी,
भारत रहेगा सदा बाबा साहेब का आभारी।।

छह दिसंबर उन्नीस सौ छप्पन के दिन,
ज्ञान के प्रतीक रहें ज्ञान में सदा तल्लीन।
बाबा साहेब का हुआ महा परिनिर्वाण,
अमर हुए सदा कर संविधान का निर्माण।।

लेखनी से कहें सदा भूताराम कलमकार,
करना हैं हमें अब बाबा का सपना साकार,
जितना लिखे उतना ही पड़े उनके लिये कम,
डटे रहो बाबा साहेब के मिशन पर हरदम।।

स्वरचित व मौलिक रचना
रचनाकार :- मास्टर भूताराम जाखल
सांचोर,जालोर(राजस्थान)

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