डॉ. राजेश कुमार जैन जी द्वारा खूबसूरत रचना#आत्मनिर्भर भारत#

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच
 सप्ताहिक प्रतियोगिता 18 से 23 दिसंबर 2020
 दिनांक 20. 12.2020
 विषय -आत्मनिर्भर भारत: शिक्षा के क्षेत्र में योगदान।

किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए, उसके नागरिकों का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।
  
        भारत में अति प्राचीन काल से ही शिक्षा का अत्यंत महत्व रहा है। हमारे चारों वेद और 18 पुराण तथा उन पर लिखे महाभाष्य इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 
         वेदों को विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है।
     प्राचीन भारतीय शिक्षा आध्यात्मिकता पर आधारित थी। शिक्षा मुक्ति एवं आत्मबोध साधन के रूप में थी।
      डॉक्टर अल्तेकर के अनुसार- वैदिक युग से लेकर अब तक भारत वासियों के लिए शिक्षा का अभिप्राय- प्रकाश का स्त्रोत रहा है, जो हमारे सभी कार्यों में हमारा पथ प्रकाशित करती है ।
        मनुष्य के जीवन को सौ वर्ष की आयु का मानते हुए उसे चार बराबर भागों में विभाजित किया गया था।
       प्रथमभाग- ब्रह्मचर्य आश्रमकहलाता है।
      यह जन्म से 25 वर्ष की आयु तक माना जाता था। ब्रह्मचर्य आश्रम में सभी विद्यार्थी गुरु के आश्रम में रहकर विद्या का अध्ययन करते थे। विद्यालय, गुरुकुल, आचार्य कुल, गुरु ग्रह इत्यादि नामों से जाने जाते थे।
      विद्यार्थी आचार्य कुल में निवास करता हुआ विद्या अध्ययन और गुरु सेवा करता था। शिक्षक को  आचार्य और गुरु कहा जाता था। विद्यार्थी को ब्रह्मचारी, व्रत धारी, अंतेवासी आदि नामों से पुकारा जाता था। ब्रह्मचर्य का पालन सभी विद्यार्थियों और स्त्रियों के लिए भी अनिवार्य था। 
     आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले विद्यार्थी नैष्ठिक ब्रह्मचारी और विद्यार्थिनी ब्रह्मवादिनी कही जाती थी।
      प्राचीन भारत में आचार्य का स्थान अत्यंत गौरवशाली और ईश्वर से भी उच्च माना जाता था । कहा गया है - " गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।"
       छात्रों का चरित्र निर्माण, उनके भोजन, वस्त्र का प्रबंध, बीमार छात्रों की चिकित्सा, सेवा- सुश्रुषा गुरु करते थे।
 वे छात्रों से पुत्र व्यवहार करते थे। विद्यार्थी भी गुरु का पिता तुल्य सम्मान करते थे।
     प्राचीन काल में काशी, नालंदा, विक्रमशिला, तक्षशिला, वल्लभी, जगददल, ओदंतपुरी, मिथिला, नदिया, प्रयाग, अयोध्या आदि शिक्षा के सर्वोच्च केंद्र थे।
   एक समय था जब भारत विश्व गुरु कहलाता था। विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे, किंतु परवर्ती काल में दुर्भाग्यवश परिस्थितियों के चक्रवात में भारत ऐसा फंसा कि यहां शिक्षा और ज्ञान का साम्राज्य विस्तार हुआ और लोग अपनी प्राचीन शिक्षा पद्धति को भूल गए।
    भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में नई शिक्षा नीति बनाई गई है, जो कि अद्भुत और अकल्पनीय है। 
     नई शिक्षा नीति देश के युवक-युवतियों को भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार ही ज्ञान प्रदान कर उनके व्यक्तित्व का विकास करेगी। यह पढ़ने की अपेक्षा सीखने पर ध्यान केंद्रित करेगी। हमारी शिक्षा व्यवस्था में जो भी खामियाँ थी उन्हें दूर कर बच्चों के स्कूल बैग और बोर्ड परीक्षा के बोझ और मानसिक तनाव से मुक्त करने का विकल्प ढूंढ लिया गया।
       नई शिक्षा नीति के तहत बिना दबाव के, बिना अभाव और बिना प्रभाव के सीखने के लोकतांत्रिक मूल्यों को हमारी नई शिक्षा नीति का विशेष अंग बनाया गया है।
      जैसे- स्ट्रीम को लेकर बच्चों पर जो दबाव था, वह अब हटा दिया गया है। अब हमारे युवा अपनी इच्छा योग्यता और एटीट्यूड के अनुसार शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। 
     आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए युवाओं को  स्किलफुल होना अति आवश्यक है। छोटी उम्र से ही वोकेशनल एक्सपोजर मिलने से हमारा युवा भविष्य के लिए अधिक उपयुक्त सिद्ध होगा। प्रयोगात्मक तरीके से सीखने से युवाओं को रोजगार भी मिलेंगे, साथ ही वैश्विक बाजार में भी हमारी हिस्सेदारी बढ़ेगी,जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने में विशिष्ट योगदान देगी। 21वीं सदी में भारत विश्व अर्थव्यवस्था को अपने ज्ञान से एक नई दिशा प्रदान करेगा। हम सहजता से प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण कर अपने निकटवर्ती बाजारों में बेचकर स्वयं के साथ ही आत्मनिर्भर भारत की राह में अतुल योगदान दे सकते हैं।
     कोरोना वायरस कॉविड 19 के प्रकोप से उपजी वैश्विक जटिलताओं के मध्य स्थानीय वस्तुओं की अत्यंत कमी खली। अचानक यातायात का चक्का जाम हो जाने से ग्लोबल विलेज की अवधारणा भूमि सात हुई और सभी लोगों ने इस बात को बखूबी महसूस किया कि आत्मनिर्भर भारत योजना में ही मानवता का कल्याण निहित है। किसी भी देश का भविष्य उस देश के बच्चों और युवाओं पर ही निर्भर करता है। यह तीनों ही किसी भी राष्ट्र के मजबूत आधार स्तंभ होते हैं। भारत में 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया है। 
    आत्मनिर्भर भारत का अर्थ है - प्रत्येक नागरिक को स्वयं पर आश्रित होना अर्थात किसी अन्य पर निर्भर ना होना। भारतीय नागरिक प्राचीन काल से ही आत्मनिर्भर रहे हैं। 



 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल 
उत्तराखंड

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