डाॅ मन्जु शर्मा जी द्वारा अद्वितीय रचना#यह कैसा नव वर्ष#

यह कैसा नववर्ष 
करें आज विचार विमर्श। 
क्यों हमें स्वीकार सहर्ष।।

कर निज संस्कृति का त्याग। 
क्यों अपनाते आंग्ल प्रभाव।।

होता मात्र वर्ष परिवर्तन। 
फिर क्यों इतना हो नर्तन।।

प्रकृति में न कोई बदलाव। 
बन्द घरों में जलते अलाव।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आये तो।
नव सुमन पल्लव पेड़ों पर।।

एक जनवरी को क्या है खास।
जैसा दिसम्बर वैसा यह मास।।

माना बदल जाता कलैन्डर।
पर 'पंचाग' बिना नहीं घर।।

होता नहीं सत्र परिवर्तन। 
वही कक्षा वही संस्थान।।

क्या होते वित्तीय खाते बन्द।
उन पर मार्च तक प्रतिबन्ध।।

किसान काटता फसल तभी।
नया अनाज आता हर घर में।।

नववर्ष मनाया जाता रात में। 
मदिरा पान और पूरे हंगामें में।।

हिन्दु नववर्ष प्रारम्भ होता है। 
पावन प्रथम व्रत नवरात्र में।।

होती अनेक स्थापना इस दिन।
चला आ रहा इतिहास पुरातन।।

नहीं गुलाम अंग्रेजों के जब।
क्यों मनाते यह नववर्ष अब।। 
 
स्वरचित
डाॅ मन्जु शर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली

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