शील शास्त्री 'शील' जी द्वारा अद्वितीय रचना#दोहा#

हे आगन्तुक नव-संवत्सर ! करना तू इतना  उपकार ।
कोरोना भय भूख व्याधि के , लाना रामबाण उपचार ।।

तन को वस्त्र ,भूख को रोटी , मेहनतकश को लाना काम ।
निर्धन को धन , बेघर को घर , भटके हुए को मिले मुकाम ।
कहीं किसी मुफलिस का निबाला , निगल न पाए भ्रष्टाचार ।
हे आगन्तुक नव-संवत्सर ...1

हरी भरी फसलें लहराएं , रहें प्रफुल्लित सभी किसान ।
मिले राष्ट्र-प्रहरियों को शक्ति , सीमा पर चौकस रहें जबान।
सीमाएं राष्ट्र की रहें सुरक्षित , लाना चौकन्ने-चौकीदार ।
हे आगन्तुक नव-संवत्सर ..2..

रहें स्वतंत्र श्रृष्टि के खग-कुल , छेड़े अपनी मीठी तान ।
खुली हवा में अठखेलीं कर , उन्मुक्त गगन 
में भरे उड़ान ।
बाज-शिकारी निरीह-पंछी को ,बना न पाए कहीं शिकार ।
हे आगन्तुक नव-संवत्सर ..3

टूटें परतन्त्र श्रंखलाएं , स्वातंत्र्य के अनहद गूँजे गान ।
मिथ्यातम के मिटें अंधेरे , प्रकटे ज्ञान, बने भगवान ।
आंख से 'शील' छलकें न आंसू , घर-घर गूँजे मंगलाचार ।
हे आगन्तुक नव-संवत्सर ...4

शील शास्त्री 'शील'
ललितपुर ,उ0प्र0 (भारत)
मोबा0 9838896172

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