शीर्षक - *मैंभारत का किसान हूं*
मैं किसान भारत का धरा,वायु ,जल,अग्नि चीर कर नित नूतन सृजन करता हूं
मैं भारत माता का बेटा हूं, नित नित माता का अभिनंदन वंदन करता हूं
अरुण प्रखर प्रचंड तप रहा हो, भू-तल भट्टी सा जल रहा हो
चल रहा हो पवन वेग से ,गात से स्वेद पानी सा बह रहा हो
वर्षा हो रही घनघोर हो , पयोद गर्जन भीषण कर रहा हो
गिर रहा शीतल बर्फ हो, कृषक वहीं जो अविचल अडिग रहा हो
मेरे हृदय में पीड़ा है पर संपूर्ण हिंदुस्तान जगाना है
सिर पर कफ़न हाथ में प्राण, पर भारत मुझे बचाना है
कोलाहल चहुंओर गूंज रहा स्वार्थों से,पर देश हमें जान से प्यारा है
कुछ द्रोही देश जलाने आमादा हैं, उनसे करना हमें किनारा है
कुछ जमींदार, दलाल दरिंदे, करने हम को बदनाम चले
देशभक्त , संजीदा सरकार हिलाने , उकसाने बहकाने हमें चले
कर शोषण हमारा अब तक नील श्रंगाल हीरो बनने अब चले
हम समझ रहे हैं खेत हो गये बंजर जिनके, अब करने हमारी भलाई चले
जिस लोभ लालच में वे जला अपना रक्त रहे, हम को समझ बेवकूफ रहे
हम सयाने बहुत बड़े हैं, हम भी अरमानों को उनके जला रहे
मैं किसान भारत का- धरा, वायु, जल, अग्नि चीर कर नित नूतन सृजन करता हूं
मैं भारत माता का बेटा हूं,नित नित अपनी माता का अभिनंदन वंदन करता हूं
जय भारत जय किसान
चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंद्र प्रकाश गुप्त चंद्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है।
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