भास्कर सिंह माणिक,कोंच जी द्वारा अद्वितीय रचना#मानवता#

मंच को नमन
विषय -मानवता
तुम लक्ष्य से पहले , 
विश्राम मत करना कहीं।
लालच में न फसना,
आप बात करना सही।
जननी माॅऺ भारती ,
परंपराओं की रही।
भाल मानवता का,
कभी झुके नहीं।
   
भाई बुजुर्गों की,
कभी न ठुकराना कही।
तुम दुर्भावना के ,
बीज कभी बोना नहीं।
मान मानवता का,
हमें निभाने दो सही।
माणिक दूर रख दो,
तुम अपने खातावही ।


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मान मानवता का, तुम घटने नहीं देना।
भारती संस्कृति को, कम होने नहीं देना।

मत ठुकराना कभी, तुम माॅऺ बाप का कहना।
जग में होता नहीं, प्रेम सम कोई गहना।
ईर्ष्या की विष बेल ,तुम बढ़ने नहीं देना।
आपसी झगड़ों को,कभी हवा नहीं देना।

नज़्म मोहब्बत की, एकता के गीत लिखना।
तुम लक्ष्य पर अपनी, हरदम आंख को रखना।
आन वान शान को, तुम झुकने नहीं देना।
कम प्रेम दीपक की,लौ होने नहीं देना।

प्रेम सिर्फ प्रेम है, तुम व्यापार मत  समझो।
माणिक सद्भाव को,तुम लाचार मत समझो।
बीज विध्वंसकारी ,तुम उगने नहीं देना।
 उर्वरा माटी का,क्षय होने नहीं देना।
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
        भास्कर सिंह माणिक,कोंच

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