तो बस अपनें कभी जख़्म
थे सच सजाऐ।।
सोचा न था न चाहा था कभी
ये जख़्म हमें हमारी पहचान
दिलाऐं।।
पर हर एक ज़ख्मों पे भी पाके
वाहवाही हम फिर खिल उठे
मुस्कुराऐ।।
इस मेरे कारवां मे कई दोस्त,
भाई,बहन,मिल मुझे आज फिर
मंज़िल थे दिलाऐ।।2।।
वीना आडवानी
नागपुर, महाराष्ट्र
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