भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा अद्वितीय रचना#गांव की माटी#

मंच को नमन
विषय - गांव की माटी
प्राणों से बढ़कर गांव की माटी।
पावन अतिथि स्वागत की परिपाटी।।

गंगा जल जैसे हैं निर्मल भाव
स्वर्ग से सुन्दर हैं पावन ठांव
अनवत प्रीति की सरि कल -कल करती
सबके हिय करता है शीतल गांव

अटल भीष्म जैसी रखता छाती।
प्राणों से बढ़कर गांव की माटी।।

सुख में दुख में मिल हंसते गाते
ईद दीवाली मिल साथ मनाते
न होते हैं वर्गवाद के झगड़े
गम का सागर हंसकर पी जाते

पंगडंडी गली प्रेम बर्षाती।
प्राणों से बढ़कर गांव की माटी।।

लहलहाते वृक्ष सुगंध लुटाते
माणिक सोना चांदी खेत उगाते
कभी ऊंच-नीच का भेद न करते

बढ़कर दुश्मन को भी गले लगाते

है भारत की माटी मेरी थाती ।
प्राणों से बढ़कर गांव की माटी।।

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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है
        भास्कर सिंह माणिक कोंच

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