आदरणीया कल्पना गुप्ता/ रतन जी द्वारा विषय होली पर अद्वितीय रचना

होली (रंग भरते हैं)
चलो आज कुछ नया करते हैं
फीका पड़ रहा जो जीवन
फिर से एक बार उस में रंग भरते हैं।
चलो आज कुछ।।।।।।।।।

आज फिर से शरारत करते हैं
बचपन वाली हरारत भरते हैं
ले पिचकारी मार उडारी
संग सबके रंगों की दुनिया में चलते हैं।
चलो आज कुछ।।।।।।।।

आज बन राधा मैं खेलूं होली
कृष्ण के रूप में प्रियतम हो हमजोली
डाल सिंदूर हो जाऊं लाल
आओ फिर से सपनों की दुनिया में चलते हैं।
चलो आज कुछ।।।।।।।।

आज सितारे आए हैं उत्तर जमी पर
दूधिया आज चांद रंगने को तैयारआप बैठा
 चांदनी संग, जहां प्यार के रंग वहां पर
आओ आज मिला गुलाल सागर को रंगीन करते हैं।
चलो आज कुछ।।।।।।।।

टेसू के फूल है हर और खिले हुए
प्रकृति के रंग में बन गुलाल मिले हुए
रंगों में डूबे ऐसे लब सिले हुए
आओ फिर से उम्र के पड़ाव में रंगीनियों भरते हैं।
चलो आज कुछ।।।।।।।।

कल्पना गुप्ता/ रतन

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