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श्रद्ध तरंग की सुगंध बिखरते,
वसंत से मनोरम अहसास हो तुम।
बसते हो कहीं,बहते हो कहीं,
जीवन की प्रेम भरी पुकार हो तुम।
छंद नृत्य संगीत के क्षण में,
भीतर बहते अनुराग हो तुम,
उत्सव मनाती भोर किरण सम,
हर दिन की नयी शुरुआत हो तुम।
शांत नीरव गगन पर जैसे,
सौरभ लुटाती स्वर्णाभ हो तुम,
स्मृति की पगडंडी पर छुपकर,
उतरी मौन पदचाप हो तुम।
सागर में अस्तित्व मिलाने को आतुर,
इस बूंद का अरमान हो तुम।
तुम्हीं से तुम्हीं तुम घटते हो,
प्रकृति पर अलौकिक वरदान हो तुम।
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मीनाक्षी कुमावत'मीरा'
रोहिड़ा (पिंडवाड़ा)
माउन्ट आबू,राजस्थान
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