सुधीर श्रीवास्तव जी द्वारा अद्वितीय कविता#ले ही लू#

ले ही लूँ
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आ गई है होली, थोड़ा सा तो पी लूं ,
बीत गया है अर्सा थोड़ा तो बहक लूँ।
देखता हूँ तो कुछ अच्छा नहीं लगता,
बस थोड़ा सा लेकर कुछ अच्छा हो लूँ।
पीना अच्छा नहीं है पता तो मुझे भी है
थोड़ा सा जीवन का कुछ मजा तो ले लूं।
पीकर बहक जाऊं ऐसा नहीं हो सकता
नाली में गिरने का अनुभव तो कर लूं ।
राज की बात है किसी से भी मत कहना
बीबी के लात घूसों का स्वाद तो चख लूँ।
होली है तो होली का खूब आनंद उठा लूँ
पीता नहीं हूँ,पीने का नाटक तो कर लूं।
आया है आज फिर से त्योहार होली का
आज तो आप सबका आशीष ही ले लूँ।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
  
©मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित

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