तुमसे मैं परिपूर्ण हूं
नारी तुमको हर रूप में पाकर
मैंने खुद को पूर्ण किया
बेटी रूप में तुमको पाकर
गर्व से मैं फुला ना समाया
मेरे घर आंगन की खुशबू
मेरे दिल का टुकड़ा बन
दिल के बहुत करीब पाया
बेटी तो है धन ही पराया
ऐसा कहने वालों की सोच पर
मुझको बहुत तरस है आया
अरे बेटी तो वह अनमोल रतन हे
जो दो कुलो को जोड़ती है
बचाने कुलो की मर्यादा
संयम ,क्षमा, शक्ति ,शील
ममता अपनत्व से
दिलो की कडियां जोड़ती हैं
त्याग उसका कितना है
तुम ने समझ पाओगे
जाकर वह दूसरे घर
अमृत बेले बन जाती
जिन माता पिता ने जन्म दिया
दूजो को अपनाती है
धर्म ,रीति-रिवाज, तुम्हारे घर के
सब वह निभाती है
कदम कदम पे साथ तुम्हारे चलती
तनिक नहीं घबराती है
बनकर पेड़ तुम्हारे घर का
घर आंगन खुशबू से महकाती है
नाजुक सी कली किसी की
फूल बन तुम्हारे घर का
घर आंगन दमकाती हैं
नाज करो तुम इन रिश्तों पर
माता ,बहन , सहचरी बन
तुम्हारा जीवन पूर्ण कर जाती।।
दिल की कलम से
मधु अरोड़ा
9.4.2021
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