भाषा -- बुन्देली
विधा -- फाग
# होली पर जीजा साली संवाद #
जीजा अबे रंग न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेंयें हों बारो
जीजा अबे रंग न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेयें हों बारो
थपकी दे दे तनिक सुबा देयों
फिर पलना में पौढा़ देयों
फिर कर हों तुम्हाओ मूं कारो
जीजा अबे रंग न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेंयें हों बारो
जीजा तनकउ न माने
बारे खां छुडा़कें पलना में पारो
जीजा को जिया मतवारो
सारी खां रंग सारो
अंचरा में लेयों हों बारो
जीजा रंग अबे न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेयों हों बारो
जीजा ने भर पिचकारी मारी
सराबोर कर दई साली की सारी
तनकउ न मानो हुरयारो
अंचरा में लेयों हों बारो
जीजा अबे रंग न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेयों हों बारो
फिर सारी हुरयानी
कलसा में भर लाई पानी
ऊ में तूतिया रंग डारो
जीजा मूं कर दओ कारो
अंचरा में लेयों हों बारो
जीजा रंगअबे न डारो
अबे रंग न डारो
अंचरा में लेयों हों बारो
सारी ने पिचकारी मारी
जीजा की सगली सकल बिगारी
भूल गये जीजा हुरयारो
अंचरा में लेंयें हो बारो
जीजा अबे रंग न डारो
अबे रंग न डारो
आंचर में लेयें हो बारो
रचना कार --सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा (काका जी)
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षिसारी रंग सा
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