तिथि 14 - 03 - 2021
विधा मुक्तक
हंसी है बेटियों की रंगों की फुहार
झुमती नाचती है गाती है मल्हार
खुश होे पापा के बाँहो में झुमती
झुमता संग संग सारा घर परिवार
अपने हाथो से बनाके लाती गुझिया
खिलाके सबको खुश होती बिटिया
पायल की छम छम मधुर संगीत से
लगती है अंबा गौरी लक्ष्मी बिटिया।
हर अनदेखी को सह लेती
चाहे अभावो भरा जीना हो
हर अभाव को स्वभाव बना
रंगों सी मुस्कुराती है बिटिया
कभी होलिका सी बन जाती है
कभी अनुसुइया बन जाती है
कभी विरागंणा लक्ष्मी बाई जैसी
रण में दुश्मन से भिड जाती है।
कभी रांझा की हीर बन जाती है।
कभी पद्ममीनी जौहर कर जाती है
कभी कल्पना चावला सी चाँद पर
रंग अनेको खूब बिखराती है
रंग अनंत है बिटिया के
हर रंग अनुपम लगती है
जिस रंग में भी देखुं उसै
प्यार के रंग बरसाती है।
अनिल मोदी, चेन्नई
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