चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र जी द्वारा विषय' हे कृष्ण फिर प्रकट हो जाओ' पर अद्वितीय रचना#

शीर्षक -  *हे कृष्ण फिर प्रकट हो जाओ*

भय,भूख से गायें रंभा रहीं हैं, ग्वाल बाल, सखियां सभी बुला रहीं हैं

अब भी अघासुर, बकासुर,कंस,पूतनायें मानवता को सता रहीं हैं

हे देवकी नंदन बासुदेव, साकार प्रकट फिर से हो जाओ

जग महाव्याधि से जूझ रहा है, तुम व्याधि विनाशक बन कर आ जाओ

व्यथित हो रहे सभी बहुत हैं, उल्लास की मुरली मधुर बजाओ

विध्वंसों के जो वाद्य बजा रहे , सम्मुख उनके पाॅ॑चजन्य बजाओ

विषैले नागों को नथ कर,हम सबको मुक्ति दिला जाओ

सुयोग्य पार्थ लाओ फिर से, स्वयं सारथि वन कर आ जाओ

हमारे राग, विराग,रोम रोम,मन हृदय में रम जाओ

वन ,उपवन,वीरान जन जन की चेतना में समा जाओ

सागर,सरिता , बूंद,धरा, व्योम के कण-कण में समा जाओ

अणु रूप है तुम्हारा, विराट बन कर हम सब में समा जाओ

अरूप हो तुम असीम रूपवान,हम सब के रूपों में समा जाओ

सुख, दुःख, यातना, संघर्षों में सदा के लिए व्याप्त हो जाओ

फिर हम विष पान भी कर लेंगे ले कर नाम तुम्हारा

तुम हो है यह अमिट अभिमान मेरा,है कन्हैया नाम तुम्हारा

करुणा करो कृपा निधान,अब साथ दो हमारा

त्रिभुवन में न कोई दूजा हमारा,बस है सहारा तुम्हारा

हे देवकी नंदन बासुदेव साकार प्रकट फिर से हो जाओ......

जग महाव्याधि से जूझ रहा है, तुम व्याधि विनाशक बन कर आ जाओ

भय ,भूख से गायें रंभा रहीं हैं ग्वाल बाल सखियां सभी बुला रहीं हैं

अब भी अघासुर,बकासुर, कंस, पूतनायें मानवता को सता रहीं हैं


              जय श्री कृष्ण


            चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र
                ( ओज कवि ) 
           अहमदाबाद, गुजरात

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          सर्वाधिकार सुरक्षित
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