तिरस्कार_ कहानी "रीमा महेंद्र ठाकुर
अनुभा कतार दृष्टि से अनुराग को देखे जा रही थी, और अनुराग बेबस सा, अनुभा हर बार खडा करती है, अपने सपनों महल और हर बार ध्वस्त हो जाता है, उस बावरी को नही पता ,
कमी उसके सपनो मे नही, उन रिश्तो मे है, जिसे वो सहेजना चाहती है, जिसकी शायद पहली ईट ही कमजोर है,!!
बहू ने घर मे कदम रखा, घर मे चारो ओर खुशियों का महौल, खाने की खूशबू फैली हुई थी, ढोलक की थाप पर बन्ना बन्नी गीत की स्वर लहरिया, और ठहाकोंसे की आवाज, सारे शोर शराबों से दूर नई बहू अनुभा को दूर के रिश्ते की भाभी, घर के पिछले हिस्से मे ले आयी थी. दुल्हिन अब घूघंट हटा दो, यहाँ कोई नही है! वो बोली, वो अनुभा से अपरचित थी, पर उस समय वो अनुभा को अपनी सी लगी थी!
अनुभा ने घूघंट थोडा सा खिसकाया, वो भाभी सामने ही बैठी थी, अनुभा ने पलके नीचे झुका ली, भाभी मुस्कराई, तभी बाहर से आवाज आयी तनय की मम्मी दीदा बुला रही है!
जी जीज्जी आयी, अनुभा तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो, तुम्है कुछ चहिये तो निस:कोच बता देना, मै अभी आयी!
हा की स्थिति मे सिर हिलाया अनुभा ने, और वो बाहर चली गई.
अब अनुभा ने चैन की सांस ली, इधर उधर देखा औसत सा कमरा था, पीछे एक बडी खिडकी थी!
अचानक से खिड़की के पास एक परछाई दिखी, अनुभा ने वापस घूघंट खीच लिया, अनुभा एक दबी सी जानी पहचानी आवाज आयी, अनुभा ने खिडकी की ओर देखा, अधेंरे मे कुछ साफ दिखाई न दिया! दुबारा से फिर से आवाज आयी, अनुभा खिडकी के पास चली आयी, पर्दा हटाते ही, जो चेहरा नजर आया वो, अनुराग का था!
अनुभा झेप सी गई, वो पीछे हटने ही वाली थी, की अनुराग ने उसे रोक लिया'अनुभा मेरी बात सुन लो फिर चली जाना,
अनुभा के कदम ठिठक गये,
अनुभा मै तुम्है,--- तभी दरवाजा खोला किसी ने, बडी जेठानी थी, हड्बडा सी गई, अनुभा , कौन था वहां,,,अगला सवाल, अनुभा ने खिडकी की ओर दृष्टि डाली अब वहाँ कोई न था!
कोई तो नही, अनुभा डर सी गई, जैसे उसने कोई चोरी की हो,
जेठानी खिडकी के पास जाकर बाहर की ओर देखने लगी, वहाँ कोई न था!
ये खाना रखा है, खा लेना, जी'हम तो कुछ देर तुम्हारे पास बैठने वाले थे, पर तुम तो कही और,,, खैर छोडो ""
अनुभा उनकी बातो को समझ पाती तब तक वो बाहर जा चुकी थी!
अगले दिन मुहं दिखाई पर अनुभा की सुदरंता की जम कर तारीफ हुई,रात मे अनुराग ने भी उसकी तारीफ मे चांद सी हो की उपमा दे डाली, वो कुछ पूछना चाहती थी पर अनुराग ने मौका न दिया,
ऐसे ही समय आगे बढता रहा, एक दिन अनुभा की दिन अचानक खुल गई वो पानी लेने रसोई मे आयी,
अम्मा नयी दुल्हिन के लछन हमे सही नही लगते, बस कर बडकी झिडक दिया सास ने, अनुभा के पैर वही ठिठक गये!
वो भागकर कमरे मे आ गयी,
अनुराग ने बहुत पूछा पर उसने कुछ न बोला, बस रोती रही,,
समय के साथ सबकुछ बदला, पर उस परिवार की सोच नही,
हरदिन किसी न किसी बात को लेकर, अनुभा को नीचा दिखाना,
आज तो हद हो गयी, बाईस साल हो गये पर अब भी वही सब घट रहा है अनुभा के साथ अनुराग का परिवार के प्रति समर्पित भाव सभी बच्चों से प्यार सबकुछ करते है अनुराग और अनुभा पर सबकी जलन भावना के शिकार हमेशा बनते है! और मिलता है तिरस्कार बेबसी और घुटन """"""" समाप्त
रीमा महेंद्र ठाकुर लेखिका"
रानापुर- झाबुआ मध्यप्रदेश
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