चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र" जी द्वारा विषय 'रानी लक्ष्मीबाई' पर अद्वितीय रचना#कविता#

शीर्षक  - *रानी लक्ष्मीबाई*
वीरता शौर्य पराक्रम की अद्भुत वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन🙏

मणिकर्णिका , मोरोपंत - भागीरथी की संतान अकेली थी

कानपुर के नाना की मुॅ॑हबोली अलबेली बहन छबीली थी

बचपन से ही खड्ग, कृपाण, कटारी  उसकी बनी सहेली थी

देश भक्ति ,साहस, शौर्य, पराक्रम की मूर्ति दुर्गा सी बनी नवेली थी

झांसी की रानी जब दहाड़ रही थी, अंग्रेजी सेना होकर निरीह निहार रही थी

वह रुद्र देवता जय जय काली बोल रही थी, अंग्रेजों की टांगें कांप रहीं थीं

स्वतंत्रता की चिंगारी जिसने पूरे भारत में भड़कायी थी

उसके अंतर्मन में प्रखर , प्रचंड अग्नि ज्वाल समायी थी

झांसी से अंग्रेजों को खदेड़ कर बढ़ी कालपी आयी थी

कालपी से पहुंच ग्वालियर, गोरी सेना की नींद भगायी थी

अंग्रेजों के मित्र सिंधिया के असहयोग से सिंहनी आहत बहुत हुयी थी

यहां रानी का घोड़ा नया था, ह्यूम की सेना घेरे चारों ओर खड़ी थी

फिर भी लक्ष्मीबाई ने  भारत माता को अंग्रेजों के मुंडों की भारी भेंट चढायी थी

रानी लक्ष्मीबाई थी घिरी अकेली , घायल सिंहनी गिरी धरा पर अमर वीर गति पायी थी

अंग्रेजी तलवारों से भारी लक्ष्मीबाई की तलवारें थी, जो विजली सी चलीं दुधारी थीं

पूरा भारत जिसकी उतारता आरती , ऐसी वह दुर्गा शक्ति अवतारी थीं

लक्ष्मीबाई पर चढ़ा बुंदेलखंड का पानी था, उस पर वह वीर मराठा पानी थी

वह गंगाधर से मानो ब्याही भवानी थी, जिसने अंग्रेजों को याद करायी नानी थी

       जय रानी लक्ष्मीबाई 
          जय मां भारती         

           चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
                 (ओज कवि)
          अहमदाबाद , गुजरात

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